Tuesday, March 5, 2013

गैर जिम्मेवार कौन ?

आज का क्षेत्रीय समाचार देखा सारे हेडलाइंस पर सरसरी नजर दे ही रहा था की सहसा नजर थम गयी एक खबर पर | खबर थी ही ऐसी , विद्यालय में किताबों की चोरी|
अगर इस खबर पर यकीन कर लिया जाय तो जरा सोचिये की किस ओर जा रहा है हमारा समाज ?
या तो चोर पढ़ने के लिए इतने सारे किताब को चुरा ले गया या फिर रद्दी के भाव बेचने के लिए |
पहले वाले कारण का चांस २% भी नही है और दूसरे पर १०२% यकीन किया जा सकता है |
मगर ऐसा कैसे हो सकता है की कोई चंद सिक्कों के लिए विद्यालय जैसे पवित्र जगह पर चोरी कर ले|
चाहे वो चोर कितना भी भूखा नंगा होगा मगर एक बार तो उसे यह ख्याल जरुर ही आया होगा की ये विद्या है माँ सरस्वती का अवतार है इस धरा पर | यही वो हथियार है जिससे हर दबे कुचले को लड़ना है |
या हो सकता है की ये बात उसके जेहन में अच्छे से बैठ गयी होगी की सरकारी संपत्ति आपकी अपनी सम्पति है इसकी रक्षा करें और वो रक्षा करने के लिए अपने घर ले गया होगा |
समस्या यहीं से शुरू होती है जरा सोंचिये आखिर जब आज के इस परिवेश में सब कुछ बदल रहा है सरकार जब आपके बच्चे को  किताब, भोजन, साईकिल, पोशाक दे रही है | दिशा और दशा बदलने के लिए सैर-सपाटे करवा रही है | समय -समय पर खेलकूद का आयोजन करवा कर शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत बनवा रही है | करोड़ो रुपया सिर्फ इस लिए खर्च हो रहा है की हमारी भावी पीढ़ी निरक्षर ना रहे| ज़माने के साथ-साथ चल सके| वो आपसे क्या चाहती है ! यही की आप अपने ही बच्चो के भविष्य के लिए उन सम्पति की रक्षा करें | ये बच्चे जो कल इस देश का नेतृत्व करेंगे उसे हम घर में सिर्फ बड़ा कर सकते है उसे इंसान "विद्यालय" बनाता है | जितना जरुरी अपने घर की रक्षा करना है उससे कहीं ज्यादा जरूरी उस विद्यालय की रक्षा करना है जिसमें हमारे "सोने" को तरासा जाता है |
माना की ऊपर से निचे तक लूट-खसोट है | नेता से लेकर अफसर तक , किरानी से लेकर ठेकेदार तक ,चपरासी से लेकर बिचौलिए तक भ्रष्ट है मगर सब ऐसे है ऐसा नही है |
एक तो वर्षों के बाद कितने पेचीदगी से गुजरने के बाद कोई जनकल्याणकारी योजना धरातल पर नजर आती है | मगर हमारी ही "मुझे क्या?" प्रविर्ति के कारण उपेक्षित हो जाती है|
माहौल भी है समय भी है और सरकार भी है आपके साथ किसी भी तरह की गरबरी की शिकायत आप सीधे उच्च पदाधिकारी से मोबाईल पर संपर्क कर दे सकते है | आप के पास आर टी आई जैसा ब्रह्मास्त्र है | मगर फिर भी "मुझे क्या?"
हम नही बदलेंगे तो कौन बदलेगा ?
क्या भगवान आयेंगे ?
कोई फरिस्ता आएगा ?
कोई पैगम्बर आएगा ?
कोई नही आने वाला है , जो करना है हमें ही करना है | अपने लिए अपने भविष्य के लिए |
माना की महंगाई इतनी बढ़ गयी है की , जरुरत इतनी बढ़ गयी है , इच्छाएँ इतनी बढ़ गयी है की कुछ करने की बात तो दूर सोचने का भी समय नही है हमारे पास | मगर समय हमें ही निकलना पड़ेगा |
हम इस बात से आज मुहँ चुरा लेंगे मगर कल जब हमारे बच्चे इस देश का नेतृत्व करने लायक बन जायेंगे और हम से पूछेंगे की हमने क्या किया ? तो क्या जवाब होगा हमारे पास ?
जिस तरह से समय बदल रहा है और आज की पीढ़ी निर्भीक और बेबाक हो रही है , जरा कल्पना कीजिये की आने वाली पीढ़ी कैसी होगी ?
आप उनसे मुहँ छुपाते फिरेंगे |
अगर मेरी इस बातों का कुछ भी असर पड़े तो मै समझूंगा की मेरी लेखनी सार्थक हुई ||

No comments:

Post a Comment