Wednesday, March 6, 2013

रेल का सफर

अपने अंदाज में अपना किस्सा 

वैसे तो मै कहीं आता जाता हूँ नही| या तो दोस्तों के साथ "गपास्टिंग" या फिर फेसबुक|
मगर इसी बीच पारिवारिक कारणों से मुझे रेल सफर करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| नियत समय से पहले स्टेशन पहुंचा| टिकट काउंटर पर दो चार बैग वाले टिकट कटा रहे थे| बगल के आरक्षण काउंटर पर दो चार दलालों को भी कमाते देख रहा था|   मैंने टिकट काउंटर से टिकट कटा कर प्लेटफार्म पर कदम रखा| मगर स्टेशन पर कम से कम 500लोग थे | कुछ छोड़ने आये होंगे तो कुछ लेने| उनलोगों को छाटने के बाद भी कम से कम 300लोग तो जरुर होंगे जिन्हें सफर करना होगा| लेकिन काउंटर का खालीपन मेरे दिमागी कैलकुलेशन को अप्रमाणित कर रहा था|
 
  
ट्रेन आयी, मैं स्वस्फूर्त निर्मित कतार में लग गया| रुमाल, गमछा, अखबार खिड़कियों के बाहर से सीट पर डाला जा रहा था| उस समय मुझे इन चीजों की अहमियत समझ में आयी और नही होने का अफ़सोस भी हो रहा था| खैर जैसे-तैसे मैं अंदर प्रवेश किया| वही हुआ जिसका डर था, सीट नही मिली| दुबला पतला रहता तो कहीं एडजेस्ट होने का चांस था| मगर इस देह का क्या करें गणेश जी एवम चंडमुंड का सम्मिश्रण जो है| जेनरल में जेनरल की ही तरह जाना पड़ेगा|
                                                                      ट्रेन चली, मैं एक सिट से सत् कर खड़ा हो गया और उम्मीद करने लगा की अगले स्टेशन पर कोई ना कोई तो कृपा करेगा ही| मगर बजट की तरह यात्रियों ने भी निरास किया| स्टेशन भी आया उतरा तो कोई नही मगर लोग चढ जरुर गए| 
                                                                    फिर ट्रेन चल पड़ी मगर उम्मीद तो जगी ही थी आखिर इस देश का नागरिक हूँ और जानता हूँ की उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है| सीट तो नही मिली मगर सुमधुर भोजपुरी संगीत का आनंद जरुर मिल रहा था जिसे सीट पर बैठा एक 'विद्यार्थी' अपने चाइनीज मोबाईल का नुमाइश करते हुए बजा रहा था| सामने के सीट पर एक दम्पति अपने एक साल के बच्चे के साथ बैठा हुआ था| पुरुष गुटखा खा कर बार बार खिडकी से थूक रहा था और इसी गंदे मुहँ से अपने बच्चे को चूम चाट रहा था| पर मुझे क्या?
 ट्रेन आगे अपने रफ़्तार से जा रही थी| तभी जोरदार धक्के से साथ ट्रेन रुकी| होर्न की आवाज सुन कर सहसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई कसाई किसी बकरे को हलाल कर रहा हो| तभी एक किरानी टाइप यात्री ने कहा -"साला फिर आज भैकंप कर दिया|" और सभी की नजर खिडकी से बाहर झाँकने लगी ताकि बाहर निकलने वाले को जी भर कर गाली दे सके| आप लोग सोंच रहे होंगे की मेरी सीट का क्या हुआ, नही मिली| 
                                                                 अब आगे फिर ट्रेन चली चाय-चाय, चिनियाबदाम-मूंगफली, रामदाना, की आवाज कानों तक पहुँचने लगी| इन फेरी वालों ने भी भैकंप का भरपूर फायदा उठाया और भैकंप के दौरान अपना डब्बा बदल लिया| कुछ यात्रियों ने चाय लिया, कुछ ने मूंगफली मैंने किताब वाले से एक मनोहर पोथी अपने बच्चे के लिए और एक मैथिली पंचांग अपने घर के लिए लिया|
                                                                चाय पीने वाले चाय पी कर डिस्पोजेबल ग्लास फर्श पर ही फेक दिया और मूंगफली खाने वाले छिलके को बड़ी शान से फर्श पर फेंक रहे थे (रेलवे आपकी अपनी सम्पति है)|
सामने एक लड़का भी बैठा था जो शायद पैसे नही होने की वजह से कुछ नही खरीद सका| तभी एक पंडी जी आये और उस लड़के को बड़े रौब से खिसकने को कहा| वह लड़का डरा तो नही शायद उम्र का लिहाज कर के पतला हो लिया| पंडी जी अपना आसन ग्रहण कर यात्रियों से नैनपरिचित होने की कोशिश करने लगे|
                                                                 कुछ देर बाद वह लड़का अपना बैग अपने पास रख लिया| दूसरे यात्री भी अपना सामान एक जगह करने लगे| मै समझ गया की स्टेशन आने वाला है\ उस लड़के ने अपने बैग से सर्टिफिकेट निकाल कर देखने लगा(शायद चेक कर रहा था की कहीं कुछ छूट तो नही गया)| पंडी जी भी एक नजर सर्टीफिकेट पर दिए और देखते ही फटाक से खड़े हो कर राम-राम करने लगे और वहां से निकाल लिए | मुझे हंसी आ गयी|  मैंने उस लड़के से सर्टिफिकेट माँगा और देख कर मुझे और हंसी आ गयी |
उस सर्टिफिकेट पर लिखा था --
नाम - मंगनू राम 
कक्षा - 12वीं 
विषय - विज्ञान(गणित)
उतीर्ण प्रतिशत - 86%
उतीर्ण वर्ष - 2011
और फिर उसे सर्टिफिकेट वापस करके हँसते-हँसते मै बोगी से उतरा और अपने गंतव्य की ओर निकाल पड़ा|
कैसी लगी ये यात्रा वृतांत ?
अगर अच्छी लगी तो कोमेंट जरुर करेंगे|
                                                  

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