Saturday, March 9, 2013

आप और जनप्रतिनिधि


एक बात आप लोग भी सोचते होंगे की जब भी मै कोई बात कहता हूँ तो उसमे चाय दुकान का जिक्र जरुर होता है | कारण है की हमारे यहाँ ना तो कोई दालान है, ना चौपाल है, और ना ही कोई सामुदायिक भवन है जहाँ आपस में बैठकर विचार-विमर्श किया जा सके | समाज के लोगों का स्वार्थी एवं उदासीन तेवर युवा शक्ति को और कमजोर कर रही है | हमारे दोस्तों को नेताओं से इतनी घिन्न है की वो उनको देखना तक पसंद नही करते | अगर कोई नेता भूले-भटके हमारे पास आ भी गया तो वो सिर्फ उपहास का पात्र बनता है |
मै जनता हूँ की क्षेत्र के विकास के लिए जनप्रतिनिधि कितने मायने रखते है मगर उनके स्वार्थी उदासीन कामचोर एवं घमंडी रवैये के कारण अब जनता में उनका विश्वास खत्म सा हो रहा है |
लोग किसी भी तरह के सरकारी काम के लिए इनके पास फरियाद ले जाने से बेहतर बिचौलिए से संपर्क करना, समझते है |
नेताओं को भी अब ये बात समझ मे आ रही है मगर अपने घमंडी तेवर और शानो-शौकत के कारण इस का इलाज नही कर पा रहे है , या फिर उन्हें खौफ है की अगर वो जनता के बीच आया तो उन्हें अपने कारगुजारियों के कारण कोपभाजन का शिकार होना पर सकता है |
जनप्रतिनिधि अपने समर्थकों के लिए ही सुलभ है , ये बात जनता के मन मे घर कर चुकी है |
जो लोग निर्वाचित जनप्रतिनधि को वोट नही किये है (समर्थक के अनुमान के आधार पर) उनका तो 36 का आंकड़ा चलता है |
अब आम जनता के मन मे एक विश्वास बैठ गया है की इलेक्शन एक व्यवसाय है और उसमे जो इन्वेस्ट करेगा वो तो कमाने के लिए ही करेगा|
और इस बात की पुष्टि नेता और उनके समर्थक के तेवर और दिनचर्या से पूर्णतया हो जाती है |



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