Monday, June 24, 2013

मगर ये जिन्दा है कहाँ ?



देखिये ये वो तस्वीर है जिसको लेने के लिए अंग्रेज सात समुन्दर पार कर लाखो डॉलर खर्च कर के खिचने आता है.


मगर इनलोगों ये बात नहीं मालूम है की इनलोगों के कारण आज इस देश की विश्व विरादरी मे कितनी बेइज्जती होती है .

मैं कहता हूँ गरीब को जिन्दा रहने का हक क्या है ?
वो जिन्दा रह कर देश और हम जैसे पर बोझ बन जाता है .
उस पर से अगर पिछड़ी जाती का है तो फिर उनको तो एकदम्मे जीना नहीं चाहिए.
मगर एक बात और देखना पड़ेगा ....
अगर ये लोग नहीं रहेंगे तो फिर योजना किस चीज की बनेगी उन्मूलन किस चीज का होगा .
इंदिरा आवास इनके लिए और इनके पैसे से बहुमंजिल मकान बना कर हाकिम रहते है .
अन्त्योदय और लाल कार्ड इनका मगर अनाज डीलर खा खा कर नेहल हो गया.
मनरेगा इनके लिए और करोड़पति प्रोग्राम ऑफिसर बन रहा है .
लोन इनके लिए मगर फायदा बिचौलिया और बैंक मैनेजर को मिल रहा है .
अफ़सोस तो इस बात की है की रेलगाड़ी में भी ये सीट पर बैठने से डरते हैं .
सरकारी कार्यालय में ऐसे खड़े रहते हैं जैसे भीख मांगने आये हो.
खाद के लिए , डीजल के लिए , पम्पसेट के लिए , स्प्रे मशीन के लिए ,
सामाजिक सुरक्षा , लक्ष्मीबाई, वृद्धावस्था पेंशन , कबीर अन्तेयेष्टि इनको मिलना बेहद मुश्किल है और मुझे भी मालूम है की ये सब योजना इनके लिए ही बनी है . मगर मलाई कोई और खा रहा है .
किसी एक ने नहीं सब ने इनको बारी बारी मारा है ,किसी ने पांच साल तो किसी ने पन्द्रह साल मगर फिर भी ये आपको जिन्दा दिख रहे होंगे .
जैसा की सरकार को दीखता है मगर ये जिन्दा है कहाँ ?
ये तो बस साँस लेता हुआ हार मांस का कठपुतली कठपुतला है .
है की नहीं ......................


Saturday, June 22, 2013

कोसी के जलस्तर में वृद्घि, चचरी पुल बहा

नेपाल के जलग्रहण क्षेत्र में हुई बारिश के चलते भुतही व कोसी नदी के जलस्तर में वृद्धि हो गई है। इसके चलते कई घाटों पर नाव चलना शुरू हो गया है। जबकि, प्रखंड मुख्यालय को दर्जनों गांव से जोड़ने वाले द्वालख पंचायत के जानकीनगर टोला स्थित चचरी पुल नदी के तेज बहाव मे कट गया। चचरी पुल को नदी ने अपने आगोश में समा लिया। यह चचरी पुल ग्रामीणों ने निजी स्तर पर चंदा इकट्ठा कर पिछले साल ही बनाया था। अब इस पुल के बह जाने से यहां भी नावों का चलना शुरू हो गया है। बाढ़ के शुरुआती समय में ही चचरी पुल बहने से ग्रामीण काफी हतोत्साहित हैं। द्वालख पंचायत के पूर्व मुखिया दुर्गानन्द झा के अलावा ग्रामीण विनीत कुमार झा, सरोज कुमार, वैद्यनाथ झा, देवानंद झा, महारुद्र झा, वीरेंद्र झा, लालमोहन झा, संतोष यादव, राजकुमार झा, जीवकांत झा, वाल्मीकि सदाय, देबू झा, बलराम झा, चंद्रकांत झा आदि ने कहा कि अब नाव के इंतजार में यहां घंटों बैठना पड़ेगा। इससे खासकर बच्चों, बूढ़ों व महिलाओं को काफी परेशानी होगी। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पुल से होकर रोजाना इलाके के दर्जनों गांवों के लोग आवागमन करते हैं। मगर अब भारी परेशानी झेलनी होगी। इसके बावजूद किसी नेता या अफसर की नजर नहीं है। सरकार व प्रशासन इस इलाके को भूल ही गया है। चुनाव के दौरान वोट मांगने के लिए यहां नेता आते हैं। पर किसी ने आजतक यहां के विकास के बारे में गंभीरता नहीं दिखाई है। लोगों ने यहां स्थायी पुल निर्माण की मांग की है।